शहीद जवान का जूता और उसके हिस्से का निवाला

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सुकमा जिले में जो जवानों की नक्सलियों से मुठभेड़ हुई जिसमें 17 जवान मारे गए उसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग करने के लिए घटनास्थल पहुंचा। घटनास्थल पर कुछ ज्यादा करने को नहीं था पेड़ों पर बस गोलियों के निशान थे नक्सलियों का एक जिंदा ग्रेनेड था और कुछ जगहों पर खून के निशान थे। ये लगभग सभी जगह होता ही है। पर मौके पर कुछ नज़ारा ऐसा भी देखने को मिला जो मुठभेड़ के समय और बाद की कहानी कह रहा था। पेड़ों में गोलियों के निशान थे जगह जगह खून के धब्बे जवान की टोपी और नक्सलियों का जिंदा ग्रेनेड। इसके अलावा जो चीजें थीं उसने बताया कि मौत से पहले जवानों की स्थिति कितनी भयावह रही होगी। जवानों के जूते बिखरे पड़े थे पर आमतौर पर नक्सली उसे भी उठा ले जाते हैं पर यहां छोड़ गए, एक जवान का खाना पड़ा था जिसे देखकर मन और दुखी हो गया कि निवाला तक उस जवान के नसीब में नहीं था जो मौत का निवाला बन गया। डिस्पोजल वाली सिरिंज बता रही थी कि जब जवान घायल रहे होंगे तो किस तरह उस बियाबान में बचने की हर वो कोशिश किये होंगे पर बच नहीं पाए। इस घटना पर तमाम जानकर अलग अलग एंगल से अपनी बात कह रहे पर मेरे पास कहने को कुछ नही कि हमने 17 जवान खो दिए जिनकी कल के बाद शायद ही कोई चर्चा करे पर 17 परिवार भी उजड़ गए और वह खाने का पैकेट बार बार मेरी नजरों के सामने घूमता रहेगा जब जब किसी जवान को देखूंगा। हालांकि मैं देख रहा था कि मेरे कुछ और साथी भी काफी जद्दोजहद से खबरें समेट कर लाये थे पर कोरोना के कहर ने 17 जवानों के बलिदान को छोटा कर दिया और खबर को स्क्रीन पर जगह नहीं मिली।